अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का उपयोग, लाभ एवं महत्त्व / Uses, Advantages & Importance of International Trade



सभी राष्ट्रों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का सामान महत्त्व नहीं है, फिर भी उन राष्ट्रों के लिए जिनकी अर्थव्यवस्था विदेशी व्यापार प्रधान है या जो अपनी उत्पत्ति का एक चौथाई से अधिक भाग निर्यात करते हैं, औद्योगिक निर्मित माल निर्यात कर कच्चे माल का आयात करते हैं । अपने देश में श्रम-विभाजन का लाभ उठाने के लिए विशिष्टीकरण अपनाते हैं । अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से सभी राष्ट्रों को लाभ मिलता है । केवल मात्रा में अन्तर हो सकता है । सामान्यतः निम्न लाभ मिलते हैं :-

{ 1 } प्राकृतिक साधनों का पूर्ण उपयोग :- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा ही सब राष्ट्र अपने प्राकृतिक साधनों का अधिकतम उपयोग कर सकते हैं, तुलनात्मक लाभ का स्वरूप बहुत-कुछ प्राकृतिक साधनों की उपलब्धि पर निर्भर है, जैसे - भारत में अभ्रक का पूरा उपयोग न होने पर भी विदेशों में निर्यात कर उसका लाभ लेने की चेष्टा की जा रही है । प्रत्येक देश प्रायः उन उद्योगों में ही विशिष्टीकरण अपनाता है, जिसके प्राकृतिक साधन देश में उपलब्ध हैं और कम लागत पर वस्तुओं का उत्पादन करते हैं । इससे साधनों का पूरा-पूरा उपयोग होता है ।

{ 2 } श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण :- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है, अतः प्रत्येक राष्ट्र उन वस्तुओं के उत्पादन में विशिष्टीकरण करता है, जिनके उत्पादन में उन्हें अधिकतम योग्यता, कुशलता, कच्चा माल आदि प्राप्त है और वे अन्य देशों की अपेक्षा अनुकूलतम दशाओं में होने के कारण कम से कम लागत पर अधिक से अधिक उत्पादन कर सकते हैं । इससे श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त होते हैं ।

{ 3 } उपभोक्ताओं का उच्च जीवन-स्तर :- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से अनेक प्रकार की वस्तुएँ उपलब्ध होती हैं, अतः उपभोक्ताओं के चयन का क्षेत्र बढ़ता है और वे देश में उन वस्तुओं का उपयोग कर सकते हैं, जो उस देश में उत्पादित नहीं होती हों । इसके अलावा उपभोक्ताओं को श्रम-विभाजन के कारण वस्तुएँ सस्ती मिल सकती हैं । इसी प्रकार उपभोक्ताओं को अनेक प्रकार की वस्तुओं के साथ सस्ती वस्तुओं की प्राप्ति सम्भव होती है, जिससे उनका जीवन-स्तर बढ़ता है ।

{ 4 } आर्थिक संकट में सहायता :- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से दुर्भिक्ष, महामारी, युद्ध एवं संकटकाल में वस्तुओं का आयात किये जाने से संकट को टाला जा सकता है   जैसे अगर अभाव के समय भारत को खाद्यान्न अमेरिका से उपलब्ध न हो या युद्ध के समय अस्त्र-शस्त्र प्राप्त न हों तो देश की अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जावे और लोगों के उपभोग स्तर में गिरावट आ जावे । अतः अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार आर्थिक संकटों से मुक्ति प्रदान करता है ।

{ 5 } वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में समानता :- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण वस्तुओं और सेवाओं का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रय-विक्रय होता है । महँगे स्थानों पर आयात होता है और सस्ते स्थानों से निर्यात होता है । इससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग और पूर्ति में संतुलन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा सम्भव होता है और सभी के क्षेत्रों में मूल्यों में समानता की प्रवृत्ति होती है ।

{ 6 } औद्योगीकरण को बढ़ावा :- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से ही पिछड़े राष्ट्र अपनी कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में औद्योगीकरण को बढ़ावा दे सकते हैं । वे अपने यहाँ से कच्चे माल का निर्यात कर मशीनें, उपकरण आदि आयात कर अपने देश का औद्योगीकरण कर सकते हैं । जैसे अगर भारत विकसित राष्ट्रों से औद्योगिक तकनीक, मशीनें, औजार, उपकरण आदि प्राप्त न करे तो क्या औद्योगीकरण की कल्पना की जा सकती है ।

{ 7 } उत्पादन की विधियों में सुधार :- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण उत्पादकों में प्रतियोगिता बढ़ती है और प्रत्येक उत्पादक कम से कम लागत पर अधिक उत्पादन के लिए आधुनिकता उत्पादन विधियाँ अपनाने का प्रयास करता है । प्रत्येक देश के उत्पादकों को विदेशी उत्पादकों मि प्रतियोगिता का भय रहता है । इससे उत्पादन विधियों में सुधार, उत्पादन में कुशलता, उत्पादन में वृद्धि और लागत में कमी होती है । एकाधिकार को ठेस पहुँचती है ।

{ 8 } विदेशी मुद्रा में अर्जन :- एक देश अपनी उत्पादित वस्तुओं को अन्तर्राष्ट्रीय वव्यापार के द्वारा उन सब देशों को भेजता है, जिन्हें आवश्यकता है । इससे निर्यातक देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है और आवश्यकता से अधिक उत्पादन का भी सदुपयोग हो जाता है ।

{ 9 } एकाधिकार प्रवृत्ति पर रोक :- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण विदेशी प्रतिस्पर्द्धा बनी रहती है और इस कारण कोई भी उत्पादक एकाधिकार प्राप्त करने में असमर्थ रहता है । इससे एकाधिकार के शोषण से मुक्ति मिलती है ।

{ 10 } उद्योगों के लिए कच्चा माल :- कुश राष्ट्रों में प्राकृतिक कच्चे माल का अभाव होता है पर वे औद्योगिक दृष्टि से काफी प्रगतिशील बन गये हैं । अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से ही वे अपने उद्योगों के लिए कच्चा माल प्राप्त कर सकते हैं । जैसे - इंग्लैंड और जापान अपने उद्योगों के कच्चे माल के लिए दूसरे राष्ट्रों पर निर्भर रहते हैं ।

{ 11 } उत्पादन साधनों का सर्वोत्तम उपयोग :- जब अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण होता है तथा प्रत्येक उत्पादक न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन करके के लिए साधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करता है तो स्वभावतः उत्पत्ति के प्रत्येक साधन को उसी क्षेत्र में प्रयुक्त किया जाता है जहाँ उसकी सीमान्त उत्पत्ति अधिकतम हो । इससे उत्पादन के प्रत्येक साधन का सर्वोत्तम उपयोग होने की प्रवृत्ति बढ़ती है और उसे राष्ट्रीय लाभांश में पर्याप्त एवं उचित पारिश्रमिक मिलता है ।

{ 12 } न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन :- श्रम-विभाजन, बड़े पैमाने की उत्पत्ति तथा विशिष्टीकरण के साथ-साथ साधनों के सर्वोत्तम उपयोग से न केवल लागत घटती है वरन अधिकतम उत्पादन सम्भव है ।

{ 13 } विस्तृत बाजार का लाभ :- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण वस्तुओं एवं सेवाओं का व्यापार क्षेत्र काफी विस्तृत हो जाता है, उसके कारण एक देश में अपने अतिरिक्त उत्पादनों को विदेशों में बेचकर लाभ कमाता है, साथ ही अपने उत्पादन के आकार को बढ़ाने के लिए स्वतंत्र होता है । इसी प्रकार विस्तृत बाजार का लाभ क्रेता को भी मिलता है, वह अपनी आवश्यकता की पूर्ति कहीं से भी वस्तुएँ माँगकर कर सकता है ।

{ 14 } आर्थिक विकास में तेजी :- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण प्राकृतिक साधनों के विदोहन को प्रोत्साहन, बड़े पैमाने पर उत्पत्ति तथा विस्तृत बाजार और उत्पादनों के व्यापार आदि से आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त होता है । अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण उत्पादन, उपभोग एवं व्यापार में वृद्धि से आर्थिक विकास में तेजी आती है । उत्पादन, रोजगार, आय तथा उपभोग बढ़ता है ।

{ 15 } अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं भ्रातृत्व में वृद्धि :- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से विभिन्न देशों की पारस्परिक निर्भरता बढ़ती है और वे एक-दूसरे के प्रति सहयोग एवं सद्भावना के साथ भ्रातृत्व भावना को बढ़ाते हैं ।

{ 16 } रोजगार में वृद्धि :- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण जब देश के आर्थिक विकास में तेजी आती है, उपभोग, आय और विनियोगों में वृद्धि होती है तो रोजगार अवसरों में भी वृद्धि होती है । उद्योगों एवं व्यापार आदि में रोजगार बढ़ता है ।

{ 17 } सांस्कृतिक सम्बन्ध एवं सभ्यता का विकास :- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विभिन्न देशों को आर्थिक दृष्टि से निकट लाता है । उनमें पारस्परिक सहयोग एवं सद्भावना बढ़ाता है   इससे लोग एक-दूसरे के निकट सम्पर्क में आते हैं और संस्कृति एवं सभ्यता के विकास का सुअवसर प्राप्त होता है ।

{ 18 } अन्य लाभ :- (i) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से कुल मानव कल्याण में वृद्धि होती है, क्योंकि देश के साधनों का सर्वोत्तम उपयोग, श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण उत्पादन में वृद्धि करते हैं । कम लागत पर उपभोक्ताओं को विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के उपभोग का मौका मिलता है, (ii) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विश्व शांति का मार्ग प्रशस्त करता है, सहयोग एवं सद्भावना की अभिवृद्धि से विश्व युद्ध के खतरे टलते हैं । (iii) अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता से तकनीकी विकास को बढ़ावा मिलता है, (iv) आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है, (v) राजनीतिक सुदृढ़ता बनी रहती है ।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के इतने लाभ होते हुए भी विभिन्न राष्ट्र विदेशी व्यापार पर अनेक प्रकार के नियंत्रण एवं प्रतिबंध लगाते हैं और उनके द्वारा ऐसी नीतियाँ अपनाई जाती हैं जो अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि का मार्ग अवरुद्ध करती हैं । यद्यपि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टि से लाभप्रद है पर  इसकी कुछ हानियाँ ऐसी हैं जो राष्ट्रों को सतर्क करती रहती हैं ।


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